विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा’ क्या है?
संविधान में किसी राज्य को ‘विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा’ (Special Category Status – SCS) देने से संबंधित कोई प्रावधान नहीं है; केंद्र सरकार द्वारा अन्य राज्यों की तुलना में प्रतिकूल परिस्थितियों वाले राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
• यह दर्जा, भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन का सामना कर रहे राज्यों के विकास में सहायता हेतु केंद्र सरकार द्वारा किया गया एक वर्गीकरण है।
• यह वर्गीकरण वर्ष 1969 में पांचवें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर किया गया था।
यह वर्गीकरण गाडगिल फार्मूले पर आधारित था, जिसमें विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे के लिये निम्नलिखित मानदंड निर्धारित किये गए थे:
1 पहाड़ी क्षेत्र;
2 कम जनसंख्या घनत्व और/या जनजातीय जनसंख्या का बड़ा हिस्सा;
3 पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं की सामरिक स्थिति;
4 आर्थिक और बुनियादी अवसंरचना का पिछड़ापन; तथा
5 राज्य वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति।
‘विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा’ प्राप्त करने के लिए
1 राज्य, खराब बुनियादी ढांचे के साथ आर्थिक रूप से पिछड़ा होना चाहिए।
2 राज्यों को पहाड़ी और चुनौतीपूर्ण इलाकों में स्थित होना चाहिए।
3 राज्यों का जनसंख्या घनत्व कम और जनजातीय आबादी अधिक होनी चाहिए।
4 राज्य, रणनीतिक रूप से पड़ोसी देशों की सीमाओं के समीप स्थित होना चाहिए।
‘विशेष श्रेणी दर्जा’ वाले राज्य के लिये केंद्र प्रायोजित योजनाओं पर कुल व्यय का 90% केंद्रीय अनुदान के रूप में भुगतान किया जाता है, तथा शेष 10% भी शून्य प्रतिशत ब्याज पर ऋण के रूप में दिया जाता है।
14वें वित्त आयोग द्वारा पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों के लिए ‘विशेष श्रेणी का दर्जा’ खत्म कर दिया गया है।
• इसके स्थान पर, आयोग ने सुझाव दिया कि प्रत्येक राज्य के ‘संसाधन अंतर’ को ‘कर हस्तांतरण’ के माध्यम से भरा जाए, और केंद्र सरकार से कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी को 32% से बढ़ाकर 42% करने का आग्रह किया, जिसे वर्ष 2015 से लागू किया गया है।
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